आपातकाल के योद्धाओं को चरणजीत अटवाल व हरविंदर सिंह संधू ने किया सम्मानित।

कांग्रेस द्वारा 50 साल पहले लगाया गया आपातकाल देश के इतिहास का भयावह काला दिन: चरणजीत सिंह अटवाल

अमृतसर, पंजाब। तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान 13 महीने 6 दिन की जेल काटने तथा यातनाएं झेलने वाले दो बार विधायक, दो बार विधानसभा स्पीकर, दो बार सांसद व एक बार लोकसभा के डिप्टी स्पीकर रहे चरणजीत सिंह अटवाल को भाजपा जिलाध्यक्ष हरविंदर सिंह संधू ने अपने टीम के सदस्यों डॉ. राम चावला, गुरप्रताप सिंह टिक्का, सलिल कपूर व मनीष शर्मा, संतोख सिंह गुमटाला, ओम प्रकाश अनार्य, इन्द्रजीत सिंह बासरके, हरदीप सिंह गिल आदि के साथ पुष्पगुच्छ व दोशाला देकर सम्मानित किया। भाजपा कार्यालय शहीद हरबंस लाल खन्ना स्मारक में जिलाध्यक्ष हरविंदर सिंह संधू की अध्यक्षता में आयोजित पत्रकारवार्ता के दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए चरणजीत सिंह अटवाल ने आपातकाल के दौरान उनके साथ घटित वृतांत के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उन्हें भी जबरन उठाकर जेल में डाल दिया गया और घोर अमानवीय यातनाएं दी गई। इस अवसर पर भाजपा कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान आपातकाल के दौरान जेल में सजाएं काटने तथा अत्याचार झेलने वाले गुरुनगरी के योद्धाओं को चरणजीत सिंह अटवाल व हरविंदर सिंह संधू ने अपनी टीम के सदस्यों के साथ सिरोपा व प्रशंसा-पत्र देकर सम्मानित किया।
चरणजीत सिंह अटवाल ने कहा कि आज से 50 साल पहले देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया था, जिसे भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय भी कहा जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा माननीय न्यायालय के फैसले के विरुद्ध जाकर 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही। उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी। इसी दिन विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र देश में लोकतंत्र का गला घोंटा गया। भारतीय जनता पार्टी आज भी इस दिन को काला दिवस के रूप में मनाती है। उन दिनों और जनता पर अत्याचारों को याद कर आज भी रूह काँप जाती है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादस्पद काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे. इसे आजाद भारत का सबसे विवादास्पद दौर भी माना जाता है।
चरणजीत सिंह अटवाल ने कहा कि इस आपातकाल का आधार इलाहबाद उच्च न्यायलय का एक मुकद्दमा जो राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश के नाम से जाना गया। न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गाँधी का रायबरेली चुनाव में पराजय घोषित की और उस पर 6 साल के लिए कोई भी चुनाव ना लड़ने का बैन ऑर्डर पास कर दिया गया। जिससे खिन्न होकर इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी, यह आपातकाल दो वर्ष तक चला, जिसमें देश की जनता सहित सभी वर्गों पर जमकर अत्याचार किये गए। देश की जनता ने इसका जवाब तत्कालीन कांग्रेस सरकार को अगले चुनाव में हरा कर दिया।
हरविंदर सिंह संधू ने कहा कि 25 जून 1975 का दिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे काले दिन के रूप में दर्ज है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता में बने रहने के लिए देश पर आपातकाल थोपा और विरोध करने वालों को असहनीय यातनाएं दी। लोगों को जबरन घरों से उठा कर जेलों में ठूंस दिया गया, उनको दिल दहलाने वाली यातनाएं दी गई और बर्बर अत्याचार किए गए। आज विपक्षी पार्टियां भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती हों, लेकिन इंदिरा गांधी ने तो लोकतंत्र की असली हत्या की थी। 25 जून 1975 को जो भारत में घटित हुआ, उसकी कल्पना करना भी वीभत्सकारी है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा अपने निजी स्वार्थ के लिए लोकतंत्र को धराशाही करने का आपातकाल एक प्रत्यक्ष उदहारण है। व्यक्तिपूजा की कांग्रेस की परिपाटी का ही परिणाम था जो कि 1974 में तत्कालीन अध्यक्ष डी. के. बरूआ ने ‘इंदिरा ही इंडिया तथा इंडिया ही इंदिरा’ जैसा नारा दिया था। इसी तानाशाही विचारधारा में आपातकाल को जन्म दिया। आज के परिवेश में कुछ तत्व अभिव्यक्ति की आज़ादी के बारे चर्चा करते हैं, परन्तु दुर्भाग्य से ऐसी विचारधारा चर्चा करना चाहती है, जिसने आज के दिन देश को अंधकार में धकेल दिया था। आपातकाल के लगते ही देश की मर्यादाएं रोंद दी गई। जनता के मौलिक अधिकार छीन लिए गए। सरकार का विरोध करने वाले नागरिकों को बिना किसी दोष के जेल में डाल दिया गया। इस अवसर पर नरिंदर गोल्डी, बलविंदर गिल, विक्की कपूर, गुरशरण सिंह बिल्ला, सतपाल डोगरा, शक्ति कल्याण आदि भी उपस्थित थे।

विक्रम शर्मा
अमृतसर, पंजाब, ब्यूरो रिपोर्ट
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